धोबी के घर हुई तकरार,
Dhobi ke ghar hui takrar
धोबी के घर हुई तकरार, रूठ गई महारानी,
धोबी धोबन ने समझावे, हाथ पकड़कर बाहर निकाले,
ना मेरे काम की रही, ना मेरे काम की रही|
6 महीने सिया, जो रावण की घर रही,
फिर भी हरि ने सिया जी, फिर भी घर में राखी|
अब नहीं राखूं रे, बोली तो लागी तन में,
राम बोले भारी मन से
जाइए ए लक्ष्मण रे, सीता ने छोड़ वन में|
जाइए बांदी, मेरी सास ने बुला ला, मिलन की जिसे चाह, आ मिल ले,
इतनी सी सुनके कौशल्या भागी आई,
तेरा ही राम मन्ने वन में खंडावे|
बिना ही कसूर सिया बन में खंडाई,
रथ जुड़ाए उसमें सिया जी बिठाई|
इस वन छोड़ूं रे, इस वन जल नहीं है,
सीता जी मर जागी रे, नीर की मारी|
इस वन छोड़ूं रे, इस वन फल नहीं है,
सीता जी मर जागी रे, भूख के मारे|
इस वन छोड़ूं रे, इस वन शेर बघेरे,
सीता जी मर जागी रे, भय के मारे|
एक वन चाली सिया, दूजे वन चाली, तीजे वन सिया जी ने प्यास लग आई,
थे तो भावज, उरे ही बैठ जा, मैं तोरी खातिर जल भर लाऊं|
रोती सुबकती की आंख लग आई, धोरे ही धर गया, जगाई नाहीं|
इतना जुल्म लक्ष्मण करना ना चाहिए|
एक वन चाली सिया, दूजे वन चाली, तीजे वन मुनि जी की कुटिया आई,
धोरे ही बिठा ले बाबा, पुत्री हूं तेरी,
किसकी जाई बेटी, किस घर आई,
के ही कसूर तने वन में खंडाई,
जनक की जाई बाबा, राम संग ब्याही,
बिना ही कसूर मुझे, वन में खंडाई|
धोरे ही कुटिया सीता रहने लागी, एक दिन कुटिया के पीछे, सीता रोवन लागी,
के बेटी तने दुख सुख पाई, के तने घर की याद सताई,
ना बाबा मैं सुख-दुख पाई, ना मैंने घर की याद सताई|
नौ मास बाबा गर्भ में लाई, इब मुझे चाहिए बाबा दाई माई|
कठे से लाऊँ बेटी दाई माई, कठे से लाऊं तोहे चार लुगाई|
उंगली का छींटा देकर, नगरी बसाई,
यह ले बेटी दाई माई, यह ले बेटी चार लुगाई,
लव कुश ने बाबा जन्म दिया स,
जे रे बेटा अपने घर पर होता,
खुशी मनाती तेरी दादी बुआ,
कठे से लाऊँ बेटी दादी बुआ,
पाँच-पाँच रूपया सेर-सेर मिठाई,
घर-घर लागी बांटन बधाई,
घर-घर लागी बांटन बधाई|
बोलो सीता मैया की जय|
श्रेणी:
राम भजन
स्वर:
Usha Bansal ji