हनुमान जी और अर्जुन
Hanuman ji aur arjun
अर्जुन अपने रथ पर सवार होकर रामेश्वरम से गुजर रहे थे, जहां उन्होंने एक कपि को रामसेतु पर बैठकर तपस्या करते देखा। लेकिन अर्जुन ने यह जाने बिना कि वह कौन हैं, उन्हें जगाने के लिए वाण चला दिया। फिर जोर से हंसने लगे। जब बजरंगबली ने अर्जुन से उनकी हंसी का कारण पूछा तो वह बोले कि उन्हें पत्थरों का सेतु देखकर हंसी आ रही है। क्योंकि प्रभु राम तो एक धनुर्धर थे, उन्हें पत्थरों से नहीं अपने वाणों से सेतु का निर्माण करना चाहिए था।
तब कपि रूप भगवान हनुमान ने समझाया कि रामजी की सेना में महावली वानर शामिल थे, जिनका वजन वाणों का सेतु झेल नहीं पाता। इस पर अर्जुन ने घमंड दिखाते हुए कहा कि मैं वाणों का सेतु बनाकर, उस पर अपना रथ दौड़ाते हुए ही यहां तक पहुंचा हूं। अर्जुन ने कहा कि अगर आप मेरा बनाया वाणों का सेतु तोड़ देंगे तो मैं खुद को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर नहीं मानूंगा। तब अर्जुन ने समुद्र पर अपने वाणों का सेतु बना दिया और हनुमानजी के सामने उसे तौड़ने की चुनौती रखी। हनुमानजी के एक बार खड़े होने पर ही सेतु टूट गया। इस पर अर्जुन निराश हो गए। तब हनुमानजी ने उन्हें अहसास दिलाया कि अपने अहंकार में उन्होंने भगवान राम का अपमान किया है। क्योंकि अपनी विद्या के घमंड में उन्होंने रामजी की धर्नुर विद्या पर संदेह जताया है।
अपनी गलती का अहसास होते ही अर्जुन ने आत्मग्लानि के भाव के साथ एक वाण से भयानक अग्नि प्रज्वलित की। हनुमानजी ने पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं? तब अर्जुन ने कहा कि भगवान के अपमान का कारण मेरी विद्या ही है और अब मैं इस विद्या के साथ ही खुद भी आत्मदाह करने जा रहा हूं। भगवान श्रीकृष्ण अपनी दिव्य दृष्टि से यह सब देख रहे थे और हनुमानजी के पुकारने पर तुरंत प्रकट हुए। दरअसल, भगवान कृष्ण ने ही हनुमानजी को अर्जुन का घमंड चूर करने के लिए भेजा था। ताकि घमंड के कारण अर्जुन पथभ्रष्ट ना हो जाएं।
तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा, मित्र तुम आत्मदाह करना चाहते हो क्योंकि तुमने मेरा अपमान किया है लेकिन ऐसा करके तुम मेरी बनाई प्रकृति के नियमों का उलंघन करोगे। मैंने मनुष्य को यह अधिकार नहीं दिया है कि वह स्वयं को अपने कर्मों का फल या पाप का दंड दे। ऐसा करके तुम ईश्वर की नीति में हस्तक्षेप करने जा रहे हो। जो कि अक्षम्य अपराध होगा। यहां ही कृष्ण ने सबसे पहले अर्जुन को महाभारत के युद्ध का संकेत दिया था। कान्हा ने अर्जुन को अहसास दिलाया कि आनेवाले समय में जो भयानक युद्ध होगा, उसमें तुम ही केंद्र रहोगे और तुम ही धुरी भी। इसलिए तुम्हें अपनी विद्या पर जो घमंड हुआ था, उसे तोड़ना आवश्यक था।
हम सब जानते ही हैं कि महाभारत के युद्ध के समय हनुमानजी थे और वे अर्जुन के रथ पर सवार थे, ध्वज का रूप लेकर। हनुमान जी ने कृष्णजी से कहाथा कि मैं अर्जुन के रथ के ऊपर विराजमान हो जाऊंगा, क्योंकि अर्जुन के रथ के ऊपर भयानक से भयानक अस्त्र और शस्त्र का प्रयोग कौरवों द्वारा होगा। अगर मेरा वजन उस रथ के ऊपर होगा तो रथ को कोई भी हिला नहीं पाएगा।
तो इसी वरदान के कारण हनुमान जी अर्जुन के रथ के ऊपर बैठे थे। आपको शायद ही पता होगा कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था और जब अर्जुन के रथ के ऊपर से हनुमान जी और भगवान कृष्ण नीचे उतर गए थे उसी क्षण अर्जुन के रथ में विस्फोट हो गया था क्योंकि अर्जुन के रथ के ऊपर शत्रुओं ने इतने अस्त्र और शस्त्र चलाए थे कि उसका असर तो उन पर होना ही था
स्वर:
बृजवासी दिवाकर शर्मा जी