सत्संग का महत्व
Satsang ka mehtva
सत्संग का क्या महत्व है
एक संत रोज अपने शिष्यों को गीता पढ़ाते थे सभी शिष्य इससे खुश थे लेकिन एक शिष्य चिंतित दिखा संत ने उससे इसका कारण पूछा शिष्य ने कहा शिष्य ने कहा गुरुदेव मुझे आप जो कुछ पढ़ाते हैं वह समझ में नहीं आता मैं इसी वजह से चिंतित और दुखी हूं गुरु ने कहा कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भरकर ले आओ शिष्य चकित हुआ आखिर टोकरी में कैसे जल भरेगा?
लेकिन गुरु जी ने यह आदेश दिया था इसलिए वह टोकरी में नदी का जल भरने दौड़ पड़ा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा उसने टोकरी में जल भरकर कई बार गुरुजी तक दौड़ लगाई लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था तब वह अपने गुरुदेव के पास गया और बोला गुरुदेव टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं कोई फायदा नहीं गुरुजी बोले फायदा है टोकरी में देखो शिष्य ने देखा बार-बार पानी में कोयले की टोकरी डुबोने से स्वच्छ हो गई है उसका कालापन धूल गया है गुरु ने कहा ठीक जैसे कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई है और तुम्हें पता भी नहीं चला उसी तरह सत्संग बार-बार सुनने से ही कृपा शुरू हो जाती है भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है लेकिन तुम सत्संग का लाभ अपने जीवन में जरूर महसूस करोगे और हमेशा गुरु की रहमत तुम पर बनी रहेगी!
इस प्रकार गुरु जी ने अपने शिष्य को कितने ही सरल तरीके से समझा दिया सब शिष्य को समझ में आया कि जब हम कर्म करते हैं तो फल अवश्य मिलता है आज नहीं तो कल मिलता है!
जितना गहरा अधिक हो कुआं उतना मीठा जल मिलता है!
जीवन के हर कठिन प्रशन का जीवन से ही हल मिलता है!
स्वर:
राज बिरला जी