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रामायण और रामचरितमानस में अंतर

Ramayan aur ramcharitmanas me antar

जय श्री राम!
मानुष जन्म अनमोल रे,
इसे मिट्टी में ना घोल रे,
अब जो मिला है फिर न मिलेगा,
कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे!
राम नाम तू बोल रे,
जीवन में रस घोल रे,
अब जो मिला है फिर न मिलेगा, कभी नहीं, कभी नहीं, कभी नहीं रे!
दोस्तों! कुछ समय पहले एक प्रसंग पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ, वह मैं आप लोगों के साथ शेयर करना चाहती हूँ! "रामायण और श्री रामचरितमानस में अंतर" आप में से कुछ लोग इस बात को जानते भी होंगे और कुछ को नहीं भी पता होगी! स्वामी श्री तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथ का नाम 'श्रीरामचरितमानस' रखा!एक बार एक भगत ने महाराज जी से पूछा, महाराज जी सभी लोगों ने रामायण बनाई: बाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, अद्भुत रामायण पर आपने श्रीरामचरितमानस बनाई, कृपया बताएंगे इन दोनों ग्रंथों में अंतर क्या है! तुलसीदास जी ने उत्तर दिया रामायण मतलब राम का आयन, राम जी का घर अर्थात राम जी का मंदिर! सब ने तो राम जी का मंदिर बनाया! तो भगत ने पूछा महाराज जी फिर आपने क्या बनाया? तुलसीदास जी ने जवाब दिया मैंने तो एक मानसरोवर बनाया: 'श्री रामचरितमानस'! मानस मतलब मानसरोवर! सब ने मंदिर बनाया पर मैंने एक मानसरोवर बनाया! तब भगत ने पूछा: स्वामी जी दोनों में अंतर क्या है? तब स्वामी तुलसीदास जी ने उत्तर दिया: दोनों में केवल एक ही अंतर है: मंदिर में पवित्र होकर जाया जाता है और सरोवर में पवित्र होने के लिए जाया जाता है! जिनके मन पवित्र हो गए हो, वह रामायण में प्रवेश करें और जिनको अपने मन को पवित्र बनाना हो, वह श्री रामचरितमानस में डुबकी लगाएं!
गाए जा निरंतर श्री राम जानकी को ए जीव,
राम नाम मंत्र इस वाणी को जपाए जा,
पाए जा पदारथ चार संतों की संगति में,
उन्हीं का संदेशा शुभ सबको सुनाए जा,
नाई जा शीश तू गुरुदेव के चरण मध्य,
भूल के कुसंग में ना खुद को मिलाए जा,
पर लाए जा पवित्र भाव अपने में ए मेरे मन,
तुलसी के मानस में डुबकी लगाई जा!
राम-राम दोस्तों!
जय श्री राम!

स्वर:

संगीता अग्रवाल जी

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